...

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ख्वाब
नींद का नितांत जोखिम लिये
सूजी हुई भारी दबी पलकों के साये में
एक बेचारा दिल
शब्दों की सुनसान सड़कों पर मंडराता हुआ
स्वयं को टटोलने की नाकाम
कोशिश करने लगा है
और सहमाता सा झिझकते हुए स्वर में
उस पूर्णिमा के चाँद को आज
आलिंगन का न्योता दे उठा है…...


© InduTomar