...

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मैं और मेरी तन्हाई
बदल जाते हैं देखते देखते ख़्यालात यहाँ
किसके रहते हैं सदा एक से हालात यहाँ

आँखों से बरसती हैं बारिशें तन्हाईयों में
करते हैं लोग ऐसे ऐसे सवालात यहाँ

मेरी गुमशुदगी पर हैरान न होना तुम
पशोपेश में है कब से मेरी हयात यहॉं

शीशे की मानिंद बिखरा हूँ तेरे जाने से मैं
आकर समेट मुझे, कर थोड़ी तो बात यहाँ

© प्रशांत शकुन "कातिब"



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