...

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बचपन का इंतजार
बचपन का इंतजार है
जो खत्म होने वाला है
बचपन का एक विचार है
जो अब साकार रूप लेने वाला है
साल दो साल और बाकी है
इस सपने को पूरा होने में
मन भूमि से युद्ध खत्म हो
रण भूमि में शुरू हो गया है
न जाने कितनी ही बार रास्ता भूली
न जाने कितनी ही बार
ठोकरें खाई और खाऊंगी
मगर विश्वास है न हारने
कि उम्मीद है जीतने कि
शुक्र गुजार हूं अपनी दृढ़
इच्छाशक्ति कि जो हर बार
फिर से लड़ने की ताकत देती है
बचपन का इंतजार है जो
अब खत्म होने वाला है बहुत कुछ खोया है बहुत
कुछ त्याग है बस एक सपने के लिए
डर हर बार लगा
इच्छाओं को मरते देख कर
दुख हर बार हुआ
अपना सब कुछ छोड़ने का
सिर्फ अपने एक सपने के लिए
क्योंकि
सुकून है भरोसा है सब
कुछ वापस मिलने का सिर्फ एक सपने के पूरा
होने पर,
बचपन का इंतजार है
जो खत्म होने वाला है
परिणाम क्या होगा नही मालूम
मगर हां इतना मालूम है
कि यात्रा से ज्यादा
भयानक नहीं होगा मगर
अब डर लगता है बचपन
के सपने के टूटेने का
तभी
लेखक की कुछ पंक्तियां याद आ जाती है कि
“ मन के हारे हार है
मन के जीते जीत",
"मान लिया तो हार
ठान लिया तो जीत "
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