नादान परिंदे
इक रोज़ नज़र जो उस बागीचे में आई
सुनहरे पंख लिए चुलबुली सी जो सबको थी भरमाए
अपने मधुर स्वर से समां बिखेर रही थी
देख उस कोई कैसे नज़र हटाए
ले एक ने ठाना
मन में खुद से किया वादा
ले इसे यहां से जाऊंगा, अपनी दुनिया को फिर जगमगाऊंगा
इसका स्वामित्व बनकर खुद को थोड़ा और ऊंचा पाऊंगा
उस परिंदे ने भी कहां देखी थी अभी...
सुनहरे पंख लिए चुलबुली सी जो सबको थी भरमाए
अपने मधुर स्वर से समां बिखेर रही थी
देख उस कोई कैसे नज़र हटाए
ले एक ने ठाना
मन में खुद से किया वादा
ले इसे यहां से जाऊंगा, अपनी दुनिया को फिर जगमगाऊंगा
इसका स्वामित्व बनकर खुद को थोड़ा और ऊंचा पाऊंगा
उस परिंदे ने भी कहां देखी थी अभी...