खद्योत
देख एक खद्योत से जगमग अभ्यारण
अंधकार में भाव सहज हो साधारण
चित्त को जब भी छाया ढक दें
मनुज को जब ये माया ठग ले
एक सूक्ष्म किरण निकले अंतर से
चमक उठे काया, हो ज्योति का वरण
देख एक खद्योत से जगमग अभ्यारण
तुम किस भाव मे हो की कुंठित...
अंधकार में भाव सहज हो साधारण
चित्त को जब भी छाया ढक दें
मनुज को जब ये माया ठग ले
एक सूक्ष्म किरण निकले अंतर से
चमक उठे काया, हो ज्योति का वरण
देख एक खद्योत से जगमग अभ्यारण
तुम किस भाव मे हो की कुंठित...