स्पष्टता
जीवन सब धुंधली सी नज़र अति है ।
क्यों नजाने दिन में नहीं, लेकिन रात में रास्ते साफ नजर आते हैं ।
मैं फंसी हूं दिन के हज़ारों शोरों में,
कि मुझे खुद की मंजिल ही दिखाई नहीं देती हैं।
मैं इतनी ही खो गयी हूँ क्या,
की रात के सन्नाटे में ही मुझे आईना नज़र आती हैं ?
© starscollide
क्यों नजाने दिन में नहीं, लेकिन रात में रास्ते साफ नजर आते हैं ।
मैं फंसी हूं दिन के हज़ारों शोरों में,
कि मुझे खुद की मंजिल ही दिखाई नहीं देती हैं।
मैं इतनी ही खो गयी हूँ क्या,
की रात के सन्नाटे में ही मुझे आईना नज़र आती हैं ?
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