...

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काला वक्त
"जवानी का जोश था
लंबी खीच्णी लगी थी रांते.
जिंदगी में ना होश था
बस थी बेहकी-बेहकी सी बांते."

"दोपहर से शाम यु ही हो जाती थी
काला वक्त भी हस्ता था मुझ पर
रात भी चुपके से मुस्कुराती थी."

"सुबहा से नाता तूट गया था मेरा
खुद को अंधेरे में अकेला पाता में .
काला वक्त था सुबहा का दुश्मन
ये समझ ना पाया मैं.
ये समझ ना पाया में "
© SAFARNAMA