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मर के आया हूं...❤️❤️✍️✍️ (गजल)
मोहब्बत के सागर में उतर के आया हूं
बेपनाह प्यार किसी से कर के आया हूं

वो माफी मांगे नामुमकिन है साहब
इसलिए मैं उसके पास डर के आया हूं

मुझे अब मरने की जरूरत नहीं 'सत्या'
मैं खुद किसी शख्स पर मर के आया हूं

जिस राह से तुम गुजर रहे हो अब
उस राह से मैं भी गुजर के आया हूं

कितना समेटे रखता था प्यार दिल में
वफाओं के नाम पर बिखर के आया हूं

देख ले ए जान कोई हसरत नहीं रही
इस कदर मोहब्बत में सुधर के आया हूं

किसी ने मेरी सीरत पर नजर नहीं डाली
सब देखते रहे कितना संवर के आया हूं

सागर प्यासा होता तो पुकारता मुझको
मैं सिन्धु को लबालब भर के आया हूं



© Shaayar Satya