...

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कोहरे की धुंध
निकल पड़ा पथ पर था वो बिल्कुल अकेला
ना कोई साथी ना इंतजार ना था कोई झमेला
इक इक कदम वो बढ़ाता जाता
सामने से धुंध हटाता जाता
ना कोई डर ना किसी को खोने का खौफ़
इतनी बहादुरी इतना बिश्वास
कैसे है इक साधारण इंसान के पास
हमारे मन में इक इच्छा जागी
उसकी कहानी सुनने को उसकी तरफ भागी
हम बोले इक पल रुक जाओ
हे मुसाफिर हमें कुछ जानना है
इक पल ठहर जाओ
हमारी बात सुनकर लगे पलट कर देखने
हाँ हम रोके थे हम उनसे लगे कहने
हमारी बात सुनकर वो वहीं ठहर गये
इक मुस्कान उनके चेहरे पर बिखर गये
वो बोले क्या पूछना है अपने प्रश्न बताओ
हम बोले क्या आपको डर नहीं किसी की फिकर
इतना घना कोहरा आधी रात का वक़्त
मौसम भी दिखा रहा है अपना मिजाज़ सख़्त
वो बोले जो होना है वही होगा ही फिर डरूं क्यों
जब इश्वर खुद करते हैं फिकर
फिर मैं फिकर करुं क्यों
मुझे तो बस कोई मुकाम है बनाना
करनी है कोशिश कुछ बन कर है दिखाना
जो करते हैँ मुझसे प्यार गर्व से नाम लें मेरा हर बार
किस्मत से मिला है जीवन और मिला है प्यार
किसी की दुआ में जिक्र है मेरा हर बार
कहकर इतना वो लगे आगे बढ़ने
हम देखते रह गये उजाला लगा था बढ़ने
अलार्म की आवाज लगी आने
खुबसूरत ख्वाब से मोबाइल लगी जगाने
उठने के बाद इतना अच्छा लगा
हमारा ख्वाब हमको इकदम सच्चा लगा ।।