...

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मुमकिन तो नहीं था
मुमकिन तो नहीं था

शादी की चूड़ियां उतार,
बंदूक उठा लेना
आंखों की शरमाहट मिटा,
गुस्से की ज्वाला मन में जला लेना

मेरी धरती पर पैर रखा था
कुछ दुश्मन कायरों ने,
मौका नहीं था ये चूड़ियां पहन
सज संवर कर घर बैठ जाने का

जो रिश्ता अभी बस बना है,
उसको आकर संवार लेंगे
मौका मिला तो समय आने पर
ये धर्म भी अपना निभा लेंगे

अभी तो वक्त है कि
इस देश के लिए अपना धर्म निभाऊं
जिन्होंने भी हाथ लगाया है इस माटी को,
उनके हाथ काट उनको परलोक सिधार आऊं

फिक्र नहीं कि ज़िंदा वापिस
आ पाऊंगी या नहीं,
मेरी मां की लाज बची रहे,
इससे ज्यादा मुझे आज
किसी चीज की परवाह नहीं
© Pooja Arora