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वो परिंदा
सुनो... कोई तुम्हें चाहेगा
क्या मुमकिन है
तुम्हें ही चाहेगा...!
क्या वो तुमसे कुछ नहीं चाहेगा?
तुम लुटा दोगी.. वक़्त
अपनी मुहब्बते
और बढती रहेगी
दोनों तरफ़ हसरतें
बहोगे दोनो ही
साथ साथ ज़ज्बात में
भूल जाओगे फर्क
रखना ऐहतियात में
फिर धीरे धीरे यक़ीनन
समाँ बदल जाएगा
कभी जी जान लुटाने वाला
तुम्हारे लिए, वक़्त भी ना निकाल पाएगा
फिर तुम अकेले चिड़िया सी
इक डाल पर बैठी
तांकना दूर तलक
कहीं तड़पता सा तुम्हें
अपना वजूद नजर आएगा।
क्या मुमकिन है
तुम्हें ही चाहेगा...!
क्या वो तुमसे कुछ नहीं चाहेगा?
तुम लुटा दोगी.. वक़्त
अपनी मुहब्बते
और बढती रहेगी
दोनों तरफ़ हसरतें
बहोगे दोनो ही
साथ साथ ज़ज्बात में
भूल जाओगे फर्क
रखना ऐहतियात में
फिर धीरे धीरे यक़ीनन
समाँ बदल जाएगा
कभी जी जान लुटाने वाला
तुम्हारे लिए, वक़्त भी ना निकाल पाएगा
फिर तुम अकेले चिड़िया सी
इक डाल पर बैठी
तांकना दूर तलक
कहीं तड़पता सा तुम्हें
अपना वजूद नजर आएगा।
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