...

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आदत
कुछ यूं लगाव हो गया था उनसे हमें,
मेरे ख़ुश होने की कही ना कही वो वजह बन चुकी थी।
आज देखा खुद को शीशे में जा कर मैंने तब पता चला,
मेरे इस नादान दिल को उनके साथ की आदत हो चुकी थी।।

इस दिल को उसकी आदत लग चुकी थी।।

पता चला जब उन्हें उनके बिना कुछ नहीं हैं अब हम,
पता नहीं ना जाने वो हमसे दुरी बनाने लगी थी।
तड़प जाते थे सिर्फ एक आवाज़ सुनने को उनकी,
छीन गयी थी खुशी क्यूंकि हमें उनकी लत जो लग चुकी थी।।

इस दिल को उसकी आदत लग चुकी थी।।

ऐसा नहीं था कोई साथ नहीं था मेरे पर,
वो मेरे दिल और दिमाक में कुछ इस कदर समा चुकी थी।
भूल चुके थे खुद को उनके जाने के बाद हम तो,
जिन्दगी तो थी पर जिन्दगी जीने की वजह मुझसे ले जा चुकी थी।।

इस दिल को उसकी आदत जो लग चुकी थी।।

जश्न भी मातम सा लगने लगा था हमें अब,
जिन्दगी से ज्यादा हमें वो प्यारी हो चुकी थी।
क्या होती हैं हसीं हमें ये भी नहीं पता अब तो,
सच बताऊ तो वो मेरी खुद की परछाई बन चुकी थी।।

इस दिल को उसकी आदत लग चुकी थी।।

बयां करने को हैं बहुत कुछ जीने की कोई वजह नहीं अब,
साथ रहने के सपने दिखा मेरे रगो में समा चुकी थी।
एक पल में कर लिया किनारा उसने तो मुझसे,
इस दुनिया को अलविदा कहने का राश्ता मुझे दिखा गयी थी।।

इस दिल को उसकी आदत लग चुकी थी।।
© sanskar goyal