...

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ये कैसा प्रेम???
साँसों की आवाजाही में वही
मादक खुश्बू,,,

और हर स्पर्श स्पंदित करता हुआ
बदन के रोम रोम को

ये कैसा प्रेम है साहिब
जो सोने भी नहीं देता है,,,

हँसने भी नहीं देता है और
रोने भी नहीं देता है,,,,

इन बेचैनियों में गुजरी रातों में
पल्लवित हो रहा है एक अँकुरण

जिस पर चटखेंगी छोटी छोटी कलियाँ
प्रेम की और

मुस्कुराकर खिल जायेगी एक रात
कुमुदिनी,,,,

तुम्हारे प्रेम की चाँदनी को छूकर
मधुर चुम्बन से सराबोर,,,,

बोलो ये सच,,, है न,,,????