...

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समय
समय कहु या मरूभूमि की बालू रेत,,
ना चाहकर भी हाथो से निकलता ही गया,,

कभी गेरो को किया दर-किनार
कभी अपनों को
नजर अंदाज
मे जाने अनजाने में
आगे बढ़ता ही गया ,,

जब तलक आया होश
देखा तो बहुत कुछ हाथो से निकल गया ,

कुछ ताल्लुक़ जो
कहने भर को थे ,,
कुछ दोस्त जो
गिने चुने थे ,,
बनावटी मुस्कराहट के साथ आगे बढ़ता ही गया,, सोज
© jitensoz