...

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tea
सुनो प्रेम...रोजाना
चाय से उठता धुंआ
उपर की और उड़ने लगता है,
तब चाय गटक ली जाती है सीने के पार
और उसके साथ
इक तेरा ख्याल...जो अंदर तक पहुंचता है
गर्म होते होते और एक हल्की सी धुप सा
तैरता रहता है मेरे जहन में,
जो रोज़ स्याह रात आँखों में उतर आता है
फिर ना ख़्वाब आता है ना नींद,
और तु उसी आँखों को भीगा देता है
और धीरे धीरे भीग जाता है तकिया सवेरे तलक...
और दूसरी सुबह औंस की बुंदे बनकर
बरामदे के कोने में पड़े हुए
फूल पत्तों पर मोतियों की तरह चमकते नज़र आते है,
जो शायद इंतज़ार करते है
सुबह का, और सुबह की चाय का...
और मैं बाएं हाथ की उंगली पर
तुम्हारा पहनाया हुआ एक रिश्ता निहारती हुई
वही औंस की बूंदों को
चायपत्ती, दूध, शक्कर और तुम्हारा ख्याल
उबाल कर बनी हुई चाय में डालकर बनी हुई
उसी चाय के कप को अपने दाएं हाथ में
लिए ...निहारती हूं
वही धुआं उसके
ऊपर तक उड़ने की राह देखते हुए...
वही तुम्हारे ख्याल को
गटकने के लिए
रोजाना.…!!
© Mishty_miss_tea