...

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जंगलराज
सरकार दुहाई है ;
कल एक हिरनी सड़क पर
खून से लथपथ कई मीलों
घिसटती हुई आई है ।
कभी झाड़ियों के पीछे ,
कभी खंडहरों में ,
कभी बसों में ,
कभी कार में ;
कलियां मुरझा रही हैं
तितलियों के पर कुचले जा रहे हैं
न्याय की तलाश में
अदालतों के चक्कर काटे जा रहे हैं।
"बेटी बचाओ ,बेटी पढ़ाओ"के
बड़े-बड़े पोस्टरों से नग्न-तन
निराश -मन ढांपे जा रहे हैं ।

बेटियां एवरेस्ट पे चढ रही हैं ,
अंतरिक्ष में जा रही हैं ,
ओलंपिक में मेडल ला रही है
नारी स्वातंत्र्य के झूठे गीत गाए जा रहे हैं
उससे भी बढ़कर;
ये लड़कियां हर रोज
मौत के खिलाफ जंग लड़ कर मर रही है;
सरहद पर लड़ रही होती

तो मरणोपरांत पुरस्कार मिलता

मगर अफसोस यह अपने समाज में

अपने अस्तित्व के लिए अपनों से लड़ रही हैं

जहां अपनों में ,अपनों से ,अपने लिए लड़ा
जाता है (अब्राहम लिंकन की लोकतंत्र की परिभाषा)
वो लोकतंत्र हरगिज़ नहीं है

वो जंगलराज है ;

जहां बलात्कार जैसी हैवानियत पर

गीदड़ , भेड़िए ,सियार, लकड़बग्घे

अट्टहास करेंगे
और इंसान चुपचाप
रास्ता बदलने की हिदायत देकर
घरों में दुबक जाएंगे ।
'ग़ाफ़िल'