...

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*साहिबजादे*


सुना रहा हूं किस्सा तुमको वीर बहादुर सच्चों का,
बलिदान हुए जो माटी पे उन छोटे छोटे बच्चों का,

महज वो 7 वर्ष और 5 वर्ष के छोटे छोटे बच्चे थे,
देख दृश्य रूह कांप उठे दम निकले अच्छे अच्छों का,

नौकर गंगू को था लालच, जो नमकहरामी कर बैठा,
थोड़ी दौलत के खातिर वो मुगलिया खबरी बन बैठा,

विश्वास पात्र गद्दार हुआ था जो ऐसा परिणाम हुआ,
साहिबजादों का साहस हिंदुत्व शिखर पर चढ़ बैठा,

वजीर खान के अत्याचार पे लाल मात के झुके नहीं,
मौत खड़ी थी आगे पर गुरु गोविंद के बेटे झुके नहीं,

निडर वो सीना तान खड़े, दीवारों में चिन जाने को,
लगाते नारा सत श्री अकाल, एक सांस वो रुके नहीं,

साम दाम और दण्ड भेद, ना नीति कोई अंजाम रही,
इस्लाम कबूल करवाने की कोशिश सब नाकाम रहीं,

स्वाभिमानी सिक्खों के जज्बे को वजीर न हिला सका,
नन्हीं सी जान के जज्बे से हैरत में ख़ास-ओ-'आम रहीं,

संदेश मिला जब पिता को तो साहिबजादों पर गर्व हुआ,
बलिदान हुए वो धर्म वतन पे, उनका अवसर ये पर्व हुआ,

और ऐसा जज्बा फिर और कहां, होगा अ हिंद के रखवालों,
दुश्मन से आंख मिलाने वाला सिक्ख मानो वो अथर्व हुआ,

© #mr_unique😔😔😔👎