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प्रतीक्षा
क्षितिज ठिठोली करके गई
विटप - विटप फैली मधुराई
झनक झांझरी पतझड़ भी
चितवत हंसि - हंसि बौराई।।
जोग लगा कहे ,जोग की भांति
तू फिरत रहे,जोगन की रीति
हृदय की गति, काहि सुनाऊं
अंखियन अश्रु किसे दिखाऊं
कब तक आस के दीप जलाए
आओ प्रतीक्षा का, इति होए।।
नैन पलक मधि पंथ धरे,
सज- धज षोडश श्रृंगार करे।
बेल भईं अधरों की निर्जल
अर्पण है तन का जल- जल
हैं मन- हरणी प्रतीक्षा तुम्हारी
आ उर ऊषर, उर्वर हो जाए।
कोंपल फूट रहीं बगियन मा
लगन लगीं बौर अमराई मा
फूल गए सब बंजर खेतवा
अलसी नीली , सरसों पियार
प्रिय तुम अब तक नहीं आए
लौट आईं हैं फिर से बहार।
© अवनि..✍️✨
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