रण बाँकुरे
जज्बातों में तूफ़ान था,
मगर नहीं वो आसान था।
न सोने को पूरी जमीं थी,
न जागने को आसमान था।
हौसला दे रही थी तो सिर्फ तन की वर्दी,
न धूप की परवाह, नहीं लग रही थी सर्दी।
आंखों में लेकर आग की चिंगारियां बढ़े थे आगे,
नेस्तनाबूद कर दिया दुश्मन को, नहीं चलने दी उसकी मर्ज़ी।
थकान,भूख,प्यास सब दे...
मगर नहीं वो आसान था।
न सोने को पूरी जमीं थी,
न जागने को आसमान था।
हौसला दे रही थी तो सिर्फ तन की वर्दी,
न धूप की परवाह, नहीं लग रही थी सर्दी।
आंखों में लेकर आग की चिंगारियां बढ़े थे आगे,
नेस्तनाबूद कर दिया दुश्मन को, नहीं चलने दी उसकी मर्ज़ी।
थकान,भूख,प्यास सब दे...