जीवन-मृत्यु
जीवन मृत्यु की राह पर चलते-चलते,
न जाने किस-किस मोड़ पर,
धक्के खाते हुए,
बस जीवन जीते चले जा रहे।
सुबह से शाम तक,
दिमाग होते हुए भी,
आज इंसा, बन कर रह गया है,
सिर्फ गुलाम,
समय का।
समय अपनी लाठी से,
न जाने किस-किस प्राणी को, ...
न जाने किस-किस मोड़ पर,
धक्के खाते हुए,
बस जीवन जीते चले जा रहे।
सुबह से शाम तक,
दिमाग होते हुए भी,
आज इंसा, बन कर रह गया है,
सिर्फ गुलाम,
समय का।
समय अपनी लाठी से,
न जाने किस-किस प्राणी को, ...