इल्तजा
#abhimpoetry
ज़ख़्म करता है अब पानी भी
बड़े तैराक अब डूबते बहुत हैं
महका रहा था जो वादिया अर्षों से
सबनमे वो गुल अब चुभते बहुत है
जहाँ मे इंसान को भेजा क्या सोच कर तुमने
बतादे तुझसे ये इल्तजा ये दरकार बहुत है
कही टुकड़ों मे बटा प्यार
...
ज़ख़्म करता है अब पानी भी
बड़े तैराक अब डूबते बहुत हैं
महका रहा था जो वादिया अर्षों से
सबनमे वो गुल अब चुभते बहुत है
जहाँ मे इंसान को भेजा क्या सोच कर तुमने
बतादे तुझसे ये इल्तजा ये दरकार बहुत है
कही टुकड़ों मे बटा प्यार
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