कोई नहीं समझता
मन बेचैन सी हैं
बड़ा ही उदास सा हैं
क्या करूं, कहा जाऊं ,
किससे कहूं अपनी मन की बात
कुछ समझ नहीं आ रहा
इतनी उलझ गई हूं मैं
अपनी मन की दलदल में
इस सही और गलत में
जैसे मैं उलझ कर रह गई
कोई नहीं समझता जज़्बात को
सब अपने मन की सोचता हैं
किसी को कह भी नहीं सकती अपनी मन की बात
सब अपनी मन की सोचता हैं
सबको गलत...
बड़ा ही उदास सा हैं
क्या करूं, कहा जाऊं ,
किससे कहूं अपनी मन की बात
कुछ समझ नहीं आ रहा
इतनी उलझ गई हूं मैं
अपनी मन की दलदल में
इस सही और गलत में
जैसे मैं उलझ कर रह गई
कोई नहीं समझता जज़्बात को
सब अपने मन की सोचता हैं
किसी को कह भी नहीं सकती अपनी मन की बात
सब अपनी मन की सोचता हैं
सबको गलत...