...

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बस यूँ ही
अन्दर हीं अन्दर वजूद को
घुन की तरह धीमे- धीमे
खोखला करती जाती है
सब होते हैं आस-पास .
लेकिन,
खालीपन घर करती जाती है..
हालात बदल‌ गये या
जज़्बात बदल गये
जिसे भी देखो
उसके ख्यालात बदल गये
अपने होकर भी
कोई अपने नहीं रहते

ऑफ लाइन बनती नहीं
किसी से किसी की
ऑन लाइन सबके लिए
सबमें प्यार भरा है
साथ बैठना
संग हंसना बोलना
अब किसी को ये
रास नहीं है
खुद में रहना
खुद को हीं प्यार करना
नये जमाने की
ईजाद यही हो गई है
बाहरी दिखावे का
आवरण सबने चढ़ा रखा है
सब जानते हैं
अन्दर से कितना
घना अंधेरा है
क्यूं है इतनी बेबसी
क्यूं बोझ दिलों पर छाया है?
मन में उदासीनता
दिलों में दर्द
किसके लिये बसाया है,??
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