नया दौर
गाँवों के देश में
पीछे छूटते जा रहे हैं गाँव
अब झूले पेड़ों पर नहीं
छतों पर लगते हैं
अब मेले गाँवों में नहीं
शहरों में सजते हैं
कईयों को पता भी नहीं अब
कुऐं और तालाब क्या होते हैं?
क्या होती है,बैलगाड़ी
अब तो कबड्डी भी
गाँवों में ना रही
छोटे छोटे खेल भी ना रहे।
खेल अब शहरों में चले गये
कुछ टी वी पर
खेती भी होने लगी
शहरों में ऊँचीं छतों पर
गरीबों को मयस्सर न रही सब्जियां
दूर से...
पीछे छूटते जा रहे हैं गाँव
अब झूले पेड़ों पर नहीं
छतों पर लगते हैं
अब मेले गाँवों में नहीं
शहरों में सजते हैं
कईयों को पता भी नहीं अब
कुऐं और तालाब क्या होते हैं?
क्या होती है,बैलगाड़ी
अब तो कबड्डी भी
गाँवों में ना रही
छोटे छोटे खेल भी ना रहे।
खेल अब शहरों में चले गये
कुछ टी वी पर
खेती भी होने लगी
शहरों में ऊँचीं छतों पर
गरीबों को मयस्सर न रही सब्जियां
दूर से...