पीड़ित आधुनिकता
इस दुनिया के कालचक्र में इस वक्त वह दौर आया है
कि मानव ने मानवता के वृक्ष रुपी वन को आधुनिकता की आड़ में इस तरह तड़पाया है
और खुद के ही हाथों से अपनी ही जाति को काल के मुंह में छोड़ा है
पर मानव जाति जैसे-जैसे काल के मुंह में समाएगी मानव की मानवता फिर अपने अस्तित्व के लिए फड़फड़ाएगी
अपनी की हुई भूलों पर पछताएगी और कोई भी तरकीब फिर काम ना आएगी
अगर उस दौर को ना जीना चाहते हो तो मानव की मानवता को न मरने देना ना ही मानव की भूलों के चक्र को आगे बढ़ने देना यह चक्र अगर रुक जाएगा तो फिर मानवता का सुनहरा दौर आएगा और मानवता रुपी वन सदाबहार वन की भांति खील खिलाएगा
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कि मानव ने मानवता के वृक्ष रुपी वन को आधुनिकता की आड़ में इस तरह तड़पाया है
और खुद के ही हाथों से अपनी ही जाति को काल के मुंह में छोड़ा है
पर मानव जाति जैसे-जैसे काल के मुंह में समाएगी मानव की मानवता फिर अपने अस्तित्व के लिए फड़फड़ाएगी
अपनी की हुई भूलों पर पछताएगी और कोई भी तरकीब फिर काम ना आएगी
अगर उस दौर को ना जीना चाहते हो तो मानव की मानवता को न मरने देना ना ही मानव की भूलों के चक्र को आगे बढ़ने देना यह चक्र अगर रुक जाएगा तो फिर मानवता का सुनहरा दौर आएगा और मानवता रुपी वन सदाबहार वन की भांति खील खिलाएगा
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