...

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आजादी
जब चारों ओर विध्वंस था, देहशकपुर्ण जो प्रपंच था,
तब एक ही भाव ध्यान था और तब वही प्रधान था,
कि स्वराज हो मुकुट और स्वाधीनता हो तिलक सिर का,
जंजीरें तोडेगे गुलामी की और आरंभ करेंगे नवजीवन का|

जुल्मी और अत्याचारीयों को घुटनों के बल बिठाया था,
धर दिया उन धडों को जिसने माँ भारती को रुलाया...