दरख्त
दरख्त के क्या कहने ,
बीज से निकले ,
बौने के सिर बाज अब खड़े ।
तरुवर तट ,
छत्तीस हवाएं ,
धधकता सूरज ,
ओले की मालाएं ,
बिगड़ती बादल माताऐ ,
लालच की घनघोर जटाएं ,
वृक्ष ना अपना मोल बोल रहा है...
बीज से निकले ,
बौने के सिर बाज अब खड़े ।
तरुवर तट ,
छत्तीस हवाएं ,
धधकता सूरज ,
ओले की मालाएं ,
बिगड़ती बादल माताऐ ,
लालच की घनघोर जटाएं ,
वृक्ष ना अपना मोल बोल रहा है...