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रावण युग... ( कलयुग...)
कौन कहता है की वो स्वच्छ है
यहाँ तो हर नज़र में चल और कपट है
हाँ, दिखावे की इस दुनिया में
न नाते है और न मोहोब्बत है
मुखौटे के पीछे छिपा है हर शक्स
ऊपर से राम और भीतर से रावण का अक्स है

क्या सतयुग और क्या कलयुग है
हर युग में मिलता धोका जरूर है
गैरों की आदत से कोई अंजान नही
बस अपनों की खोट से मेहरूम है
दिखावा है बस, ना कोई भूल है
कांटों से भरा हुआ एक गुलाब का फूल है
मुखौटे के पीछे छिपा है हर शक्स
ऊपर से राम और भीतर से रावण का अक्स है...

ये रोज की दौड़ तो बस एक बहाना है
किसी को दफन तो किसी को राख हो जाना है
जो सींचा जायेगा, बस यहीं छूट जाना है
दो दिन के आंसू होंगे और सबको भूल जाना है
फिर शुरू होगी ख़ोज, जरा देखें कितना खज़ाना है
चंद कागज़ के टुकड़ों का सारा संसार दीवाना है
अब तो हर किसी के जीवन का यही मूल है
मुखौटे के पीछे छिपा है हर शक्स
ऊपर से राम और भीतर से रावण का अक्स है...

ये सब कुछ तो सतयुग में भी होता आया है
सीता हरण कर, रावण लंका ले आया है
ऐसी ही कुछ आज, कलयुग की छाया है
खौफनाक है मगर, निर्भया जैसे दृश्य भी दिखाया है
याद करो लंकापति रावण को, जिसने नारी सम्मान भी सिखाया है
सहमति हो तो ठीक वरना उनके निकट भी नही आया है
तो कैसे हो तुलना उस रावण से हमारी, क्योंकि
मुखौटे के पीछे छिपा हर शक्स
ऊपर से राम तो है पर भीतर से दरिंदो का एक घिनौना साया है...

(ये कविता उनके लिए है जिसने बुराई की हर हदों को पार किया है...)
-Aezz ख़ान... ©
© Aezz खान...