...

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कही मैं निर्दयी तो कही पे मेहरबान सा
अगर मैं शायर तो लिखुँ किसकी कहानी
लफ़्ज़ों में लिपटा हूँ अनसुनी दास्तान सा

जिंदगी के मोड़ पर खड़ा मैं इम्तिहान सा
कभी मुर्दा तो कभी जिंदा मैं बे-जान सा

जहाँ जैसे लोग वहाँ वैसे मुझे परखते है
कही मैं निर्दयी तो कही पे मेहरबान सा

शहर के लोगों मुझे जान पाना आसान नही
मैं फैला हुआ हूँ इस अनंत आसमान सा

© Akash dey