...

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तुम मेरी....
तुम कभी मेरी ख्वाहिश नहीं थी,
क्योंकि ख्वाहिश पूरी हो जाए तो तलब नहीं रहती

तुम कभी मेरी आदत नहीं थी, क्योंकि आदत वक्त के साथ बदल जाता है

तुम मेरी दुनिया नहीं हो, क्योंकि दुनिया भी एक दिन खत्म हो जानी है

तुम मेरी जरूरत नहीं हो, क्योंकि जरुरत के समय जुबान मीठा और नियत साफ हो जाता है

तुम मेरी चांद नहीं हो क्योंकि वह भी अपना आकार बदलते दिन में हमसे दूर हो जाता है

तुम मेरी किस्मत नहीं हो क्योंकि किस्मत अक्सर धोखा दे जाती है

तुम मेरी मन्नत नहीं हो, क्योंकि मन्नत पूरी हो जाए तो अगले की इबादत होती है

तुम मेरी ला-हासिल चाहत हो, जो नाव की कश्ती में मिली और हथेली के स्पर्श भर से बिजली के वेग से दिल में जाकर बस गई, जिसकी तलब कल भी थी, आज भी है और हमेशा रहेगी !!

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