मिथ्या जगत -
मुश्किलों, अपवादों की कल्पनाओं से घिरा मैं अकेला,
हर मानव मेरे आगे बनता जाये शहंशाह और मशीहा !
उनके हर लफ़्जों पर वाणों सा प्रहार सहता है हृदय मेरा,
भला किसी का करने निकलू जख्म मिलता मुझको गहरा,
संस्कारो ने मुझे सिखाया सबके साथ मिलकर चलना,
वक्त की छवी को देख अकेला रोता हृदय मेरा !
अपनों की खुशी के कारण सबके आगे नाच नाचता मैं अकेला,
व्यथित मन के...
हर मानव मेरे आगे बनता जाये शहंशाह और मशीहा !
उनके हर लफ़्जों पर वाणों सा प्रहार सहता है हृदय मेरा,
भला किसी का करने निकलू जख्म मिलता मुझको गहरा,
संस्कारो ने मुझे सिखाया सबके साथ मिलकर चलना,
वक्त की छवी को देख अकेला रोता हृदय मेरा !
अपनों की खुशी के कारण सबके आगे नाच नाचता मैं अकेला,
व्यथित मन के...