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!...चेहरे पर चेहरा...!
एड़ी रगड़ी, चेहरा रगड़ी, ना रगड़ी कभी मन का अपने
देखन दुनिया तब हम जानी, कौनो नाही धन के अपने

पव्वा पी मदारी नाचे, जोगी नाचे ता ता थय्या
तन की मीरा जग का भावे, मन का ज्ञानी रहे अकेले

तन का मुश्क भगाए मन, मन का इश्क नचाए जग
तन जग निकली मन से हमरे,जाई के तब बनी फकीरा

कव्वा कुकूर और सपवा जूठन खाए तन के मेला
हमरा न कोई तेरा मेरा, जहां न कोई वहां सवेरा

होनी जो होवन कैसे टाली, बसुरी सुन आई दासी
पाप लपेटन हज कर याई, बिन धन पापी कैसे जाई

तितली जुगनू कीट पतंगे होली खेलन निकले घर से
बरबर जाई पंख फैलाई, कैसे प्रीतम से हम मिल पाई

© —-Aun_Ansari

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