...

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~ ख़्वाब और हकीक़त ~
एक झूठा ख़्वाबों का जहान
हम बेवजह ही सजाने लगे
अब ये ज़िन्दगी भी हमें
हकीक़त से रूबरू करवाने लगे,

पता नही मुक्कमल हो या ना हो
ये तमाम ख़्वाब मेरे
अपने आशियाने में बैठे
इसको दुनियाँ से हम छिपाने लगे,

बड़े प्यार से बनाया था
सिर छुपाने के लिए ख़्वाबों का घरौंदा
ये कड़वे हकीक़त के तुफान उड़कर
इनका नामोनिशान मिटाने लगे,

ये गुजरता वक़्त भी हमारा
असलियत से गला घोंट रहा है
सबसे अपने दर्द को छुपा कर
अब हम झूठे मुस्कुराने लगे,

चोरों तरफ़ फ़ैला है
कैसा ये कश्मकश का कोहरा
कि अपने अंदर के शोर को
ख़ामोशीयों से ही हम सुलझाने लगे,

पल भर में फिसल जाती है
हमारे हाथों से सारी खुशीयाँ
किसी को दोष ना देकर
अपने क़िस्मत को ही गलत हम ठहराने लगे।
© मेरे अल्फाज़....🦋