...

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पन्ने डायरी के
वो अधूरे से हैं खाब मेरे बिखर गए है ये मंजर देख
अब खत्म हो गया है पागलपन राख से ही आग रौंदी गई
वो बढ़ता हुआ आतंक और खौफ खा रहि ये रातें देख
जब बढ़ा है कब थमा हैं आते हुए डर की आखरी झंकार
रो रहा है हर कोना सहमा गया हैं बढ़ता निशाचर तिमिर देख
छुँछ हुआ है इंधन इस शव का उड़ा हैं वाष्प सा
ओ सर्वज्ञ सूख गए...