...

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मेरे निशान..
हाल क्या पूछते हम मौसम का,
हमें तो खुद को आजमाने की तड़प है।
मेरी शख्सियत थोड़ी अलग है,
जहां मिले मौका मेरी नज़र वहां तलक है।
आना और चले जाना,
यही मकसद नहीं है मेरी ज़िन्दगी का,
पर्दों से निकलकर हकीकत में जीना है,
मेरी मौन दास्तां को अब आवाज़ देना है।
परिंदे, पौधे और बेजुबानों को समझना है।
मेरे नाम के बहुत है यहां
मुझे अपने काम से सुमार होना है।
किसी को तो यकीन होगा सादगी में,
मुझे बस उसी डगर का निशान होना है।
मुझे अपने काम से कलमकार होना है।

✍️मनीषा मीना