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हम हुए उथले,समस्याएँ और भी गहरी हुई
बिमार है मौसम,हवाएँ इस कदर ज़हरी हुई

कट गए लोगों से औ' बंध गए ख़ुद से कहीं
आजकल आदत हमारी इसतरह शहरी हुई

ज़िन्दगी के अर्थ को एक अर्थ देना चाहिए
सांसें तो चलती रही पर उमर थी ठहरी हुई

जबतलक थे मौन ,भीड़ थी कितनी मुखर
औ हम कहने लगे जब,भीड़ ही बहरी हुई

वक़्त ने कर डाला, बेवक़्त हर इन्सान को
क्या पता कब दिन ढला और दोपहरी हुई

हालात से जब हुए दो चार, तो जाना यही
जिस्म तो हौवा रहा यह जान गिलहरी हुई