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आत्मज्ञान के तीन शर्ते
26/8/24

ज्ञान है तो शांति है
सपने से उठ जागना ,
आत्मज्ञान की शर्तें तीन
श्रद्धा संयम साधना।

दो प्रकार के शांति होती है द्वैतात्मक और अद्वैतात्मक शांति।
इस जगत में इस सामाजिक तौर पर जो तत्काल शांति मिल जाती है उसे काल ही छीन लेती है।
यह थोड़ा सुख देकर भारी दुख देने की अधिकार रख लेती है।
हमारी बीच-बीच के सुख सफलता और शांति ही हमारी हार और अशांति का कारण बनता है।
कर्म और परिस्थितियों के हेर फेर से हम राहत पा लेते हैं।
द्वैत शांति हमेशा विरोधाभास से आती है। द्वैतात्मक शांति शर्त रखती है कि पहले तनाव हो तो राहत हो पहले गर्म हो तो ठंडा हो।
द्वैत शांति,सफलता अक्सर संयोग या तुक्का पर टिका हुआ रहता है। हम इसी क्रम को दोहराते रहते हैं शाय़द फिर ऐसा कुछ हो जाए।
लेकिन इससे हमारे केंद्र में बदलाव नहीं आता है।
केंद्र का बदलाव ही अद्वैतात्मक शांति यानी परम शांति है।
यह हम और आत्मा के केंद्र में ही शांति है।
जिसने केंद्र में शांति स्थापित कर लिया वह बाहर के दिशा में शांति नहीं मांगता जो केंद्र से है वह परिधि का परवाह नहीं करता । बाहर के लिए वो‌ बेपरवाह है।वो चाहे जैसे रहे।
इसी को कहते हैं साक्षित्व निष्कामता आत्मा मुक्ति आनंद।
हमें सस्ती शांति से बचना चाहिए।
आत्मज्ञान ही परम शांति है।
अंहकार=अपुर्णता=अशांति
इसके कारण पुर्णता और शांति स्वभाव है।
अशांति का कारण हम संसार और कर्म को दोष देते हैं।केंद्र के कारण नहीं ढूंढते हैं।...