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लम्हे जीते हैं मगर कुछ तो शराफत से अभी
नज़रें मिलती है मगर कुछ तो नफ़ासत से अभी
शाम से सहर बदलती ये बताये कैसे
सब्र की बांध दरकती ये ज़तायें कैसे ...
नज़रें मिलती है मगर कुछ तो नफ़ासत से अभी
शाम से सहर बदलती ये बताये कैसे
सब्र की बांध दरकती ये ज़तायें कैसे ...