...

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हौसला
ना वक़्त भला था ना हालात भले थे ,
बस आंखों में सपने लिए निकल पड़े थे,
ना मंज़िल का पता था , ना रहने का ठिकाना था ,
बस आंखों में सपने और दिल में ढेरों सैलाब लिए थे,
निकल पड़े थे मंज़िल की तलाश में ,
हम निकल पड़े थे अपनी कोशिश में ,
कभी बसो में तो कभी ट्रेनों में ,
सफ़र लंबा था हौसला बुलंद था ,
रास्ते में ठोकर ना लगे ,
दिल में ये डर भरा था ,
बस मंज़िल तक पहुंच जाऊं ,
यही सोच रखा था ,
आगे का सफ़र अभी भी रुका ही था ,


© sancreation