...

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तब हम बच्चे थे
जेष्ठ के दोपहरी धूप मे,
आम तोड़ने जाया करते थे।
दौड़ते थे, कुदते थे,
दो-तीन डंडे भी खाया करते थे।
तब हम बच्चे थे।।

बड़े-बुढे से डाट खाने के बाद,
हम एक रूटीन बना लिया करते थे।
जिसका पालन करना,
पहाड़ काटने के बराबर थे।।
तब हम बच्चे थे।।

जब-जब गर्मी की छुट्टियां होती,
हम खुश हो जाया करते थे।
कल-कल करते-करते,
होमवर्क बनाना, भूल जाया करते थे।।
तब हम बच्चे थे।।

जब हम स्कूल जाते,
कुएँ मे कंकड़ फेका करते थे।
फिर आने वाले आवाज का,
मजा लिया करते थे।।
तब हम बच्चे थे।।