...

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The Fictional Universe
कड़ाके की गर्मी में एक दिन
मैं बिन बादल बरसात से टकराया था।

ज़िन्दगी की इस भागगड़ में एक दिन
मैं एक अजीब माणूस से टकराया था।

वो बोले "अतरंगी हैं तू और तेरे ये तरीकें
चल अभी यही बैठकर बंटवारा कर ले ।

मैं ठहरा भोला, मासूम और बिलकुल नादान
तो पूछा उनसे "किस किस का बंटवारा करले?

वो हंस के बोले, रे मुर्ख!
चल सब कुछ बाँट लेते हैं।

जिस ज़मीन को मैं ने उपजाऊ बनाया वो मेरा
जिस धरती को तूने खंडहर बनाया वो तेरा।

जिस जल को मैं ने शीतल बनाया वो मेरा
जिस पानी को तू ने नालायक बनाया वो तेरा।

जिस वायु को मैं ने पावन बनाया वो मेरा
जिस पानी को तू ने काला और बत्तर बनाया वो तेरा।

जिस हरियाली को मैं ने हरा बनाया वो मेरा
जिन पेड़ पौधों को तू ने राख बनाया वो तेरा।

मैं ने सोचा, ये कैसा अज्ञानी है
ऐसा बंटवारा कर के आखिर क्या पायेगा?
ऐसा बंटवारा करके आखिर ये क्या पायेगा?

वो तो जब आँख खुली तो प्रतीत हुआ
वो स्वयं करता धर्ता अंतर्यामी हैं
जिसने मुझ से अपना ही ब्रम्हांड माँगा।

ज़िन्दगी की इस भागगड़ में एक दिन
मैं एक अजीब माणूस से टकराया था।

कड़ाके की गर्मी में एक दिन
मैं बिन बादल बरसात से टकराया था।