मंज़िल मिल गईं
तेरे इक़ इशारे से इशारे को भी राह मिल गई
यू जैसे सागर को किनारें की राह मिल गईं
बिख़र जाती ये उल्फ़त भी यू ही शुक्रिया के
इस उल्फ़त को भी उल्फ़त की चाह मिल गईं
देखता हूँ भटकते...
यू जैसे सागर को किनारें की राह मिल गईं
बिख़र जाती ये उल्फ़त भी यू ही शुक्रिया के
इस उल्फ़त को भी उल्फ़त की चाह मिल गईं
देखता हूँ भटकते...