मजदूर की आस....
अपना गांव छोड़कर ,शहरों में वो आए हैं
छोटा सा कोई काम मिल जाए बस एक ही आस लगाए हैं|
सुबह की तपती धूप में भी वो अपनी मंजिल ढूंढ लाए हैं कितनी रातों को वो भूखे सोए इसका एहसास किसी को ना करवाए हैं |
दुख दर्द सह कर भी वो हर बार मुस्कुराए हैं,
वो...
छोटा सा कोई काम मिल जाए बस एक ही आस लगाए हैं|
सुबह की तपती धूप में भी वो अपनी मंजिल ढूंढ लाए हैं कितनी रातों को वो भूखे सोए इसका एहसास किसी को ना करवाए हैं |
दुख दर्द सह कर भी वो हर बार मुस्कुराए हैं,
वो...