...

14 views

अधखुला दरवाज़ा
आज फिर पुराने मोहल्ले से
गुज़रते हुए नज़रें
उसी दरवाज़े से टकरा गईं ,
जहाँ रहती थी मेरी वो पुरानी पड़ोसन .......
पर अब किसी ने मेरा
नज़रों से अभिवादन न किया
न ही वो मीठी सी मुस्कान बिखेरी
न वो सुर्ख़ आँचल का साया लहराया
और न ही था बेझिझक घर में आने का
आमंत्रण .......
कभी रौनक सी रहती थी जिस दरवाज़े पर
आज वो सूना सूना सा महसूस हुआ
हमेशा मैंने टाला उसका आमंत्रण
ये कहकर कि फ़ुर्सत में मिलेंगे
आज जब वो  पल हैं तो
बुलाने वाली हमेशा के लिए
फ़ुर्सत लेकर चली गई ......
और ताक रहा है वो
अधखुला  दरवाज़ा मेरी ओर

  पूनम अग्रवाल





© All Rights Reserved