...

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मैं और तुम।
मैं हूँ इक कोरा कागज़्
तू है स्याही लिख दे मुझे,
मैं हूँ इक ठहरी सी नदी
तू है गति ले जा मुझे,
मैं साया हूँ मगर धूप में
तू छाया ,छिपा ले मुझे,
अँधेरे मेे हुई गुम हाँ
हूँ इक तितली मैं शोख सी
तू है इक रोशन जुगनू
आ रास्ता दिखा दे मुझे,
मैं हूँ कोई बहकी साज़् इक
तू आवाज़ है गा ले मुझे,

मेरे हम्कदम् मैं तन्हा हूँ
सूनी राह पर ठहरी हुई
आजा फिर चलें साथ हम
किसी राह पर मिले तो सही,
मैं हूँ इक शवेत् आसमां
तू है रंग सतरंगी सा,
उड़ा दे कुछ तो ग़ुलाल
रंगीन कर दे मेरा जहाँ,

कुछ बिखरा है मुझमें टूट के
कुछ ज़ख्म् अंदर पनपने लगे
मेरी ढ़लती शाम का चाँद तू
आ चांदनी बना ले मुझे।

मैं हूँ इक कोरा कागज़्
तू है स्याही लिख दे मुझे।

fayza.
© fayza kamal