...

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विरह वेदना....क्यों छोड़ गए कान्हा....
जैसे बिछड़ गए सब रिश्ते नाते,छूट गईं मायके की गलियां।
झुलस गए हों फूल शाख के, जैसे टूट गईं मासूम सी कलियां।।

झीलों को जाने कैसी पीड़ा है,जो तैरती कश्तियां डूब गईं।
जैसे बदल लिए हैं रास्ते मेरे घर से,खुशियां तो मानो ऊब गईं।।

ना चाह रही अब छांव,लगाव की, वो बागियां सारी उजड़ गईं।
वो ले गए दिल-ए-करार,मन-ए-ख्याल मेरे,मेरी निंदियां उखड़ गईं।।

बरस भर का दिन भयो है सखी, अब बीते ना ये बैरी रैना।
रह- रह तेरी याद सताए मोरे प्रीतम,दिल कहीं ना पाए चैना।।

दिन जैसे तैसे गुजरा गयो, काटे ना कटे अब ये निगोडी रतियां।
जलाएं,सताएं,तरसाएं,झुलसाएं जब-जब याद आएं तोरी बतियां।।

सूना लागे अंगना,चांद की चांदनी भी अब मेरो बदन जलावे है।
फैली स्याह काली अंधियारी ये रात,जियरा...