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वो कहते हैं कि वो मेरे अज़ीज़ हैं
फिर क्यूं नहीं वो मेरे क़रीब हैं

क्या ये सच में अपने
रिश्तों का कमाल हैं
या फिर ये उनका एक
शब्द जाल हैं

हल्का सा फ़र्क दिख जाता
उनके कहने और कर जाने में
क्या है जो छूट जायेगा
दूरियों के भर जाने में
नहीं पता क्या रखा हैं
भविष्य के गर्त में
क्या जाता हैं एक
कोशिश को आजमाने में

वक्त का एक अजीब
मिज़ाज होता हैं
दूरियां कम भी करे
और बढ़ाता भी हैं
फ़र्क ये हैं कि वक्त
कब दिया
साथ रहने का वक्त या
तन्हाइयों में गुजारने का वक्त

यूँही खड़े रहने से दूरी
और बढ़ जाएगी

दो कदम तुम भी चल लो
क्या पता दूरी कट जायेगी

ये जीवन का सफ़र ही हैं
कुछ पाने और खोने का

किसी से कुछ पाने का तो
किसी को कुछ देने का

चाहो तो कट जायेगी
बांटो तो बट जायेगी
जिंदगी का
सफर है ये
साथ चलो
दूरी घट जाएगी


Nishu __