...

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ख्यालों का आशियाना
ख्यालो मे एसी गुम हुं,
चुप चाप सी अपनी उस,
दुनिया मे खुश हुं,
ना कोई अपना है,
ना कोई पराया,
अपने इन ख्यालो का,
अपना सा एक साया,
छाव भी देते हे तो बस खुशी की,
क्यों? क्योंकि ये अपनी ही एक,
बनाई हुई माया ।।

ख्यालो मे एसी गुम हुं,
चुप चाप सी अपनी उस,
दुनिया मे खुश हुं,
ना कोई गम है, ना कोई स्पर्धा,
बस यहाँ तो मेरा ही मेरा चर्चा,
कुछ ना था वो भी मेरा,
कुछ था वो भी मेरा,
इस ख्याली दिनिया मे ,
सब अपना सा है,
ना कोई जात है, ना कोई धर्म,
ना कोई हिंदु है , ना कोई मुस्लिम,
बस यहाँ कुछ है तो प्रेम, लगाव और सहानुभूति,
यह मेरी रची हुई एक मन मोहक दुनिया है,
इसका असल
जिंदगी से न कोई वास्ता,
पर ये ख्याल मुझे कभी उड़ना सिखाते है,
तो कभी मेरे जीने का जरिया बन जाते है।।
© joshi urvi