...

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तुम कौन?
मैं ना जाना तुम कौन? हो मेरी
बस साँसों ने ख़ुदा माना है तुम्हें

ख़्वाहिश मुकम्मल हो या ना हो
हर मंज़िल का पता माना है तुम्हें

बेदर्द ज़माना ज़ख्म से याराना है
हर ज़ख्म पे मरहम जाना है तुम्हें

नमी आँख की कहती रही कुछ
रब से बस दुआ मेें माँगा है तुम्हें

बेनाम रहा सफ़र इश्क़ का यार
कांटा मैं, "गुलाब" माना है तुम्हें
© कृष्णा'प्रेम'