...

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जर्रा जर्रा, पत्ता पत्ता
जर्रा जर्रा, पत्ता पत्ता
टुटता जा रहा हूँ।
ये जिंदगी, तेरी वाकये से
रूठता जा रहा हूँ।

माहताब से यारी
भाँती है मुझे बहोत,
फिर भी घूँट घूँट अँधेरा
पीता जा रहा हूँ।

मायूस, माँ के बगैर,
मेरे बाद कौन ही होगा,
टुकड़ा टुकड़ा उसके लिए
जीता जा रहा हूँ।

पा रहा हूँ खुद में
हर लम्स लम्स तेरा,
और मैं हूँ कि लफ्ज़ लफ्ज़
बिखरा जा रहा हूँ।

जलने, जलाने से आसाँ है
मिट्टी में कैद होना,
कतरा कतरा शम्स का
पिघला जा रहा हूँ।

लुटाकर जिंदगी हर किसी पे,
खुद लुटता जा रहा हूँ।
जर्रा जर्रा, पत्ता पत्ता,
ये जिंदगी, टुटता जा रहा हूँ।

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@Writco
© shaj